“पिता की हत्या ने बदल ली शिबू सोरेन की जिंदगी” मुखिया का चुनाव हार गये थे गुरुजी, जानिये फिर कैसे 8 बार बने सांसद, जानिये कब-कब चुनाव हारे..
"Father's murder changed Shibu Soren's life" Guruji had lost the election of Mukhiya, know how he became MP 8 times, know when he lost the elections..

Shibu Soren Biography : झारखंड आंदोलन के पुरोधा, आदिवासी समाज के मसीहा और झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के संस्थापक शिबू सोरेन का आज निधन हो गया। 81 वर्षीय ‘गुरुजी’ बीते डेढ़ महीने से किडनी संबंधी बीमारी से जूझ रहे थे और चिकित्सकों की निगरानी में थे।शिबू सोरेन का निधन केवल एक नेता के जाने की खबर नहीं, बल्कि एक विचारधारा, एक संघर्ष और एक युग के अंत की घोषणा है। उन्होंने अपने जीवन को आदिवासी समाज की पहचान, अधिकार और आत्मसम्मान के लिए समर्पित कर दिया।
नेमरा के लाल ने रचा राजनीतिक इतिहास
11 जनवरी 1944 को रामगढ़ जिले के नेमरा गांव में जन्मे शिबू सोरेन का जीवन बचपन से ही कठिनाइयों से जूझता रहा। उनके पिता सोबरन मांझी, जो पेशे से शिक्षक थे। सोबरन मांझी को महाजनों ने धोखे से मार डाला। यही घटना शिबू के जीवन का निर्णायक मोड़ बनी और उन्होंने शोषण के खिलाफ बिगुल फूंक दिया।बचपन में पढ़ाई के लिए हॉस्टल में भेजे गए शिबू ने पिता की हत्या के बाद किताबों से दूरी बना ली और संघर्ष की राह पकड़ ली।
शिबू सोरेन हजारीबाग में रहने वाले फारवर्ड ब्लॉक नेता लाल केदार नाथ सिन्हा के संपर्क में आए. कुछ दिनों तक छोटी-मोटी ठेकेदारी का काम भी किया. पतरातू-बड़काकाना रेल लाइन निर्माण के दौरान उन्होंने कुली का काम भी मिला. लेकिन उन्होंने यह काम छोड़ दिया।शिबू सोरेन ने सबसे पहले बड़दंगा पंचायत से मुखिया का चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए, बाद में जरीडीह विधानसभा सीट से भी चुनाव लड़े, लेकिन इसमें भी सफलता नहीं मिली।
‘धनकटनी आंदोलन’ से ‘दिशोम गुरु’ तक
पढ़ाई छोड़ने के बाद उन्होंने महाजनों और साहूकारों के खिलाफ जनांदोलन शुरू किया। ‘धनकटनी आंदोलन’ के दौरान वे और उनके साथी सूदखोरों के खेतों से जबरन धान काटते थे। तीर-धनुष से लैस आदिवासी युवाओं के साथ वे खेतों में उतरते, और यही संघर्ष उन्हें लोगों की नजरों में “दिशोम गुरु” यानी ‘देश का गुरु’ बना गया।
उनका करिश्माई नेतृत्व धीरे-धीरे झारखंड के गांव-गांव में फैल गया और वे आदिवासी जनता की आवाज बन गए।
राजनीति की शुरुआत, लोकसभा में ऐतिहासिक जीत
1980 में शिबू सोरेन ने दुमका लोकसभा सीट से अपना पहला चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। इस जीत के लिए उन्होंने ‘दिशोम दाड़ी चंदा’ अभियान चलाया, जिसके तहत हर गांव के परिवार से चावल और नगद चंदा एकत्र किया गया।शिबू सोरेन कुल 8 बार दुमका से सांसद चुने गए, जो एक बड़ी राजनीतिक उपलब्धि रही। वे 3 बार राज्यसभा सांसद भी रहे।
केंद्र में मंत्री और राज्य में तीन बार मुख्यमंत्री
शिबू सोरेन केंद्र सरकार में दो बार कोयला मंत्री रहे। झारखंड राज्य गठन (2000) के बाद उन्होंने तीन बार मुख्यमंत्री पद संभाला:
• 2005 में पहली बार मुख्यमंत्री बने, लेकिन शशिनाथ हत्या कांड में नाम आने के कारण इस्तीफा देना पड़ा।
• 2008 में दूसरी बार सीएम बने, लेकिन तमाड़ उपचुनाव हारने पर इस्तीफा देना पड़ा।
• दिसंबर 2009 में तीसरी बार मुख्यमंत्री बने, लेकिन राजनीतिक समीकरणों के चलते कम समय में ही पद छोड़ना पड़ा।
झारखंड आंदोलन का चेहरा, राज्य निर्माण के शिल्पी
शिबू सोरेन ने 40 साल से अधिक समय तक अलग झारखंड राज्य की मांग के लिए संघर्ष किया। बिनोद बिहारी महतो और एके राय जैसे नेताओं के साथ मिलकर उन्होंने झामुमो की नींव रखी।उन्होंने कभी न झुकने वाला नेतृत्व दिया और अपने आंदोलनों से झारखंड के लोगों को यह विश्वास दिलाया कि वे केवल शोषित नहीं, बल्कि अधिकार प्राप्त कर सकते हैं। 2000 में जब झारखंड राज्य बना, तो यह उनके जीवन की सबसे बड़ी विजय थी।
एक युग का अंत, एक विरासत जीवित
आज जब शिबू सोरेन इस दुनिया से विदा हो गए हैं, तब उनकी विरासत उनके पुत्र हेमंत सोरेन के रूप में जीवित है, जो वर्तमान में झारखंड के मुख्यमंत्री हैं। शिबू सोरेन अब नहीं हैं, लेकिन उनका संघर्ष, सिद्धांत और संकल्प झारखंड के कण-कण में जीवित रहेगा।