हाईकोर्ट बड़ी खबर : शादी के लिए छुट्टी ली, तो कर्मचारी हुआ बर्खास्त…अब हाईकोर्ट ने विभाग को दिया आदेश, नौकरी लौटाओ, वेतन भी दो…

High Court big news: Employee was dismissed for taking leave for marriage… Now High Court has given order to the department, return the job, pay the salary too…

Highcourt News : कर्मचारियों से जुड़े एक अहम मामले में हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। प्रोबेशन पीरियड में बिना इजाजत शादी की छुट्टी लेने के मामले में बर्खास्त कर्मचारी को 9 साल बाद बहाल करने का आदेश हाईकोर्ट ने सुनाया है। हाईकोर्ट ने ये भी कहा है कि बर्खास्त कर्मचारी की ना सिर्फ सेवा बहाली होगी, बल्कि इस दौरान उन्हें वेतन भुगतान भी किया जायेगा।

 

मामला छत्तीसगढ़ का है, जहां हाईकोर्ट के फैसले से बर्खास्त कर्मचारी को बड़ी राहत मिली है। प्रॉबेशन अवधि में बिना अनुमति शादी की छुट्टी लेना बालोद जिला न्यायालय के एक चपरासी को भारी पड़ा था । 20 दिन की गैरहाजिरी के बाद जब वह काम पर लौटा तो उसे नौकरी से निकाल दिया गया। लेकिन अब नौ साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद उसे फिर से नौकरी मिल गई है।

 

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने हाल ही में सुनाए गए एक फैसले में राजेश कुमार देशमुख की बर्खास्तगी को “पहले से कलंकित” माना है। कोर्ट ने कहा कि देशमुख की सेवा समाप्ति बिना विभागीय जांच के की गई, जो नियमों के खिलाफ है। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने बर्खास्तगी आदेश को रद्द करते हुए बालोद जिला न्यायालय को उसे फिर से बहाल करने और 50 प्रतिशत बकाया वेतन देने का आदेश दिया है।

 

राजेश कुमार देशमुख को 1 मई 2014 को चपरासी पद पर नियुक्त किया गया था और 7 अप्रैल 2016 से उन्हें दो साल की प्रॉबेशन अवधि पर रखा गया था। उन्होंने अपनी शादी के लिए 27 अप्रैल से 7 मई 2016 तक 7 दिनों की अर्जित छुट्टी मांगी थी, क्योंकि उनका विवाह 28-29 अप्रैल को तय था। बालोद के जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने उनकी छुट्टी को खारिज कर उन्हें केवल तीन दिन के लिए अलग से आवेदन देने का निर्देश दिया था।

 

इसके बावजूद देशमुख 24 अप्रैल से 12 मई 2016 तक ड्यूटी से नदारद रहा। इस पर 27 मई 2016 को उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया गया। अपने जवाब में उसने कहा कि उन्हें छुट्टी अस्वीकृत होने की जानकारी नहीं थी और उन्होंने माफी भी मांगी। बावजूद इसके, 22 जून 2016 को उन्हें छत्तीसगढ़ सिविल सेवा (आचरण) नियम 1965 और सामान्य सेवा शर्त नियम 1961 के तहत मुख्यालय छोड़ने और अनुशासनहीनता के आरोप में नौकरी से हटा दिया गया।

 

देशमुख ने अपनी बर्खास्तगी को अधिवक्ता आर. के. केशरवानी और अजिता केशरवानी के माध्यम से चुनौती दी। यह मामला जस्टिस संजय एस. अग्रवाल की एकलपीठ में सुना गया। सुनवाई के दौरान वकीलों ने दलील दी कि प्रॉबेशन पर कार्यरत कर्मचारी को बिना विभागीय जांच के नहीं हटाया जा सकता। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के विजयकुमारन बनाम सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ केरल मामले का हवाला भी दिया।

 

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने पाया कि बर्खास्तगी आदेश में देशमुख को ‘गंभीर रूप से लापरवाह’ कहा गया, जबकि कारण बताओ नोटिस में केवल छुट्टी को लेकर सवाल उठाए गए थे, न कि उनके मुख्यालय में न रहने को लेकर। कोर्ट ने माना कि बिना जांच और सफाई का मौका दिए इस तरह की टिप्पणी करना देशमुख के करियर को नुकसान पहुंचा सकता है, इसलिए यह आदेश कलंकित माना जाएगा।

छत्तीसगढ़ की बिलासपुर हाईकोर्ट ने न केवल बर्खास्तगी आदेश को निरस्त किया, बल्कि साफ किया कि अगर आगे कोई नई जांच नहीं होती है, तो देशमुख को सेवा समाप्ति से पुन बहाली तक की अवधि के 50 प्रतिशत वेतन का हकदार माना जाएगा।

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