JPSC-JSSC भर्ती में आरक्षण लाभ पर हाईकोर्ट में सुनवाई हुई पूरी, वृहद पीठ ने फैसला रखा सुरक्षित, जानिये क्या है पूरा मामला
Hearing on reservation benefits in JPSC-JSSC recruitment completed in High Court, larger bench reserved the decision, know what is the whole matter

रांची। झारखंड में प्रतियोगी परीक्षा के अभ्यर्थियों से जुड़े मामले में हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। हाईकोर्ट की तीन जजों की वृहद पीठ ने गुरुवार को जेपीएससी (झारखंड लोक सेवा आयोग) और जेएसएससी (झारखंड कर्मचारी चयन आयोग) की भर्ती परीक्षाओं में आवेदन की अंतिम तिथि के बाद बने जाति प्रमाणपत्र के आधार पर आरक्षण लाभ दिए जाने से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई पूरी की।
चीफ जस्टिस तरलोक सिंह चौहान, जस्टिस आनंद सेन और जस्टिस राजेश शंकर की पीठ ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया है। अब सभी की नजरें वृहद पीठ के फैसले पर टिकी हैं। यह फैसला न केवल मौजूदा याचिकाओं के लिए महत्वपूर्ण होगा, बल्कि भविष्य में जेपीएससी और जेएसएससी की भर्ती प्रक्रियाओं में आरक्षण से जुड़ी शर्तों को लेकर भी मार्गदर्शक साबित होगा। अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है, जो आने वाले दिनों में सुनाया जाएगा।
क्यों पहुंचा वृहद पीठ के पास मामला?
दरअसल इस विवाद पर पहले हाई कोर्ट की दो अलग-अलग खंडपीठों ने परस्पर विरोधी निर्णय दिए थे। इसी वजह से इसे तीन सदस्यीय वृहद पीठ को सौंपा गया। खंडपीठ ने सुनवाई के लिए तीन अहम कानूनी सवाल तय किए थे:
1. क्या राज कुमार गिजोरिया केस का फैसला हर मामले में लागू होगा, चाहे प्रमाणपत्र आवेदन तिथि के बाद प्रस्तुत किया गया हो?
2. क्या भर्ती विज्ञापन में यह शर्त रखना कि प्रमाणपत्र अंतिम तिथि तक ही जारी होना चाहिए, संविधान के अनुरूप है?
3. क्या यह शर्त जेपीएससी और जेएसएससी के अधिकार क्षेत्र से बाहर है?
याचिकाकर्ताओं का पक्ष
याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ताओं ने तर्क दिया कि जाति प्रमाणपत्र जन्म से तय होता है, तिथि से नहीं। ऐसे में अगर कोई उम्मीदवार जन्म से एससी/एसटी है तो आवेदन की अंतिम तिथि के बाद जारी प्रमाणपत्र को भी मान्य माना जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि केवल जारी करने की तिथि के आधार पर आरक्षण से वंचित करना अन्याय होगा।
आयोग की दलील
वहीं, जेपीएससी और जेएसएससी की ओर से कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक भर्ती विज्ञापन में दी गई शर्तें बाध्यकारी होती हैं। अगर उसमें लिखा है कि अंतिम तिथि तक का ही प्रमाणपत्र मान्य होगा, तो उसके बाद जारी प्रमाणपत्र स्वीकार नहीं किया जा सकता। आयोग की ओर से अधिवक्ता सुनील कुमार, रोहिणी प्रसाद, महाधिवक्ता राजीव रंजन, संजय पिपरवाल और प्रिंस कुमार ने पैरवी की।









